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ग़ज़ल
आ कर चमन में आह-ए-ख़िज़ाँ ने ये क्या किया
बेला नहीं गुलाब नहीं या समयँ नहीं
श्याम सुंदर लाल बर्क़
ग़ज़ल
बेला बाटेंगे सवारी में किसी गुल के ये क्या
ग़ुंचों की मुट्ठियों में किस लिए ज़र रहता है
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
कहा मैं ने बात वो कोठे की मिरे दिल से साफ़ उतर गई
तो कहा कि जाने मिरी बला तुम्हें याद हो कि न याद हो
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
कहूँ किस से मैं कि क्या है शब-ए-ग़म बुरी बला है
मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता