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ग़ज़ल
शाम हुए ख़ुश-बाश यहाँ के मेरे पास आ जाते हैं
मेरे बुझने का नज़्ज़ारा करने आ जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
रहे हिर्स-ओ-हवा दाइम 'अज़ीज़ो साथ जब अपने
न क्यूँकर फ़िक्र-ए-बेश-ओ-कम हमें भी हो तुम्हें भी हो
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
असर अब और क्या होना था उस जान-ए-तग़ाफ़ुल पर
जो पहले बेश ओ कम था वो भी ज़ाइल होने वाला है
ज़फ़र इक़बाल
ग़ज़ल
ग़म नहीं होता है आज़ादों को बेश अज़-यक-नफ़स
बर्क़ से करते हैं रौशन शम्-ए-मातम-ख़ाना हम