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ग़ज़ल
अब तुम सोचो अब तुम जानो जो चाहो अब रंग भरो
हम ने तो इक नक़्शा खींचा इक ख़ाका तय्यार किया
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
डरे क्यूँ मेरा क़ातिल क्या रहेगा उस की गर्दन पर
वो ख़ूँ जो चश्म-ए-तर से उम्र भर यूँ दम-ब-दम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
या तो ख़्वाबों में हक़ीक़त का कोई रंग भरो
या तो कह दो कि कोई ख़्वाब न पाला जाए
मशकूर ममनून क़न्नौजी
ग़ज़ल
न ठंडी साँसें भरो दौर-ए-मय में हम-नफ़साँ
ये आग भड़केगी मय-ख़ाने में हवा न करो