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ग़ज़ल
ये जो इक लड़की पे हैं तैनात पहरे-दार सौ
देखती हैं उस की आँखें भेड़िये ख़ूँ-ख़्वार सौ
प्रताप सोमवंशी
ग़ज़ल
उन्हें मैं क़ौम का क़ाइद तो कह नहीं सकता
वो भेड़िये हैं जो भेड़ों की खाल ओढ़े हैं
कलीम क़ैसर बलरामपुरी
ग़ज़ल
दनदनाते फिर रहे हैं ज़ाफ़रानी भेड़िये
घर के अंदर घुस के बच्चों को उठा ले जाएँगे
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
ग़ज़ल
सुनी है जब से हम ने भेड़िया आया कहानी
यक़ीं इंसान पर कम है ज़ियादा भेड़िये पर