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ग़ज़ल
साबिर ज़फ़र
ग़ज़ल
क्यों रिश्ता-ए-उल्फ़त टूट गया क्यों हाथ से दामन छूट गया
किस तरह भुलाई याद तिरी वो आज भुलाना याद आया
पैकर जाफरी
ग़ज़ल
इस की सब को पहचान नहीं ये दो दिन का मेहमान नहीं
मुश्किल है बहुत आसान नहीं ये प्यार भुलाना बचपन का
आनंद बख़्शी
ग़ज़ल
पूछे मुल्ला से जिसे करना हो सज्दा सहव का
सीखे गर अपना भुलाना कोई हम से सीख जाए