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ग़ज़ल
बिन चाहे बिन बोले पल में टूट फूट कर फिर बन जाए
बालक सोच रहा है अब भी ऐसा कोई खिलौना होगा
मीराजी
ग़ज़ल
उस के बा'द बहुत तन्हा हो जैसे जंगल का रस्ता
जो भी तुम से प्यार से बोले साथ उसी के हो लेना
बशीर बद्र
ग़ज़ल
मैं ज़िंदा हूँ तो इस ज़िंदा-ज़मीरी की बदौलत ही
जो बोले तेरे लहजे में भला मेरी ज़बाँ क्यूँ हो
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
ज़ख़्म-ए-दिल बोले मिरे दिल के नमक-ख़्वारों से
लो भला कुछ तो मोहब्बत का मज़ा याद रहे
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
अब ऐसे होने को बातें तो ऐसी रोज़ होती हैं
कोई जो दूसरा बोले ज़रा अच्छा नहीं लगता