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ग़ज़ल
तुम अपने होंठ आईने में देखो और फिर सोचो
कि हम सिर्फ़ एक बोसे पर क़नाअ'त क्यूँ नहीं करते
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
दिल अपना बेचता हूँ वाजिबी दाम उस के दो बोसे
जो क़ीमत दो तो लो क़ीमत न दी जाए तो रहने दो
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
बोसे की तो है ख़्वाहिश पर कहिए क्यूँकि उस से
जिस का मिज़ाज लब पर हर्फ़-ए-सवाल बाँधे
मोहम्मद रफ़ी सौदा
ग़ज़ल
कहीं बोसे की मत जुरअत दिला कर बैठियो उन से
अभी इस हद को वो कैफ़ी नहीं हुश्यार बैठे हैं
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
ताबिश कानपुरी
ग़ज़ल
ग़ुंचा-ए-ना-शगुफ़्ता को दूर से मत दिखा कि यूँ
बोसे को पूछता हूँ मैं मुँह से मुझे बता कि यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
देता हूँ अपने लब को भी गुल-बर्ग से मिसाल
बोसे जो ख़्वाब में तिरे रुख़्सार के लिए
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
मैं पहले बोसे से ना-आश्ना रखूँगा तुम्हें
फिर इस के बा'द तुम्हें दूसरा नहीं दूँगा
लियाक़त जाफ़री
ग़ज़ल
कौन सज्दों में निहाँ है जो मुझे दिखता नहीं
किस के बोसे का निशाँ मेरी जबीं पर रह गया
इम्तियाज़ ख़ान
ग़ज़ल
मुँह खोले हैं ये ज़ख़्म जो बिस्मिल के चार पाँच
फिर लेंगे बोसे ख़ंजर-ए-क़ातिल के चार पाँच