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ग़ज़ल
न ब्रिज टूटे न आँख झपकी न वक़्त बीता
न जाने क्या कुछ बिसरना था क्या बिसारना था
चंद्र प्रकाश शाद
ग़ज़ल
माना मैं ने चश्म-ए-करम दिन रात अदू पर रहती है
ब्रिज रौशन रुख़ से तेरे होगा मेरा काशाना भी
तबीब आरवी
ग़ज़ल
उन्हें ये फ़िक्र है हर दम नई तर्ज़-ए-जफ़ा क्या है
हमें ये शौक़ है देखें सितम की इंतिहा क्या है
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
अगर दर्द-ए-मोहब्बत से न इंसाँ आश्ना होता
न कुछ मरने का ग़म होता न जीने का मज़ा होता
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
बोता रहता हूँ हवा में गुम-शुदा नग़्मों के बीज
वो समझते हैं कि मसरूफ़-ए-फ़ुग़ाँ रहता हूँ मैं
अहमद मुश्ताक़
ग़ज़ल
फ़ना का होश आना ज़िंदगी का दर्द-ए-सर जाना
अजल क्या है ख़ुमार-ए-बादा-ए-हस्ती उतर जाना