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ग़ज़ल
तुम्हें किस ने बुलाया मय-कशों से ये न कह साक़ी
तबीअ'त मिल गई है वर्ना मयख़ाने बहुत से हैं
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
नूह नारवी
ग़ज़ल
ये तुम बे-वक़्त कैसे आज आ निकले सबब क्या है
बुलाया जब न आए अब ये आना बे-तलब क्या है