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ग़ज़ल
ये ज़मज़मा तुयूर-ए-ख़ुश-आहंग का नहीं
है नग़्मा-संज बुलबुल-ए-रंगीं-नवा-ए-क़ल्ब
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
बात क्या है खोया खोया सा नज़र आता है क्यों
'फ़ैज़ी'-ए-रंगीं-नवा जादू-बयाँ कुछ इन दिनों
फ़ैज़ी निज़ाम पुरी
ग़ज़ल
छुप के बैठेगा कहाँ तू हम से ऐ रंगीं-नवा
होगा तू जिस रंग में मिल जाएँगे उस रंग से
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
ख़ुदा की रहमतें ऐ मुतरिब-ए-रंगीं-नवा तुझ पर
कि हर काँटे में तू ने रूह दौड़ा दी गुलिस्ताँ की
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
मिटी जाती थी बुलबुल जल्वा-ए-गुल-हा-ए-रंगीं पर
छुपा कर किस ने इन पर्दों में बर्क़-ए-आशियाँ रख दी