हर सहर रंगीं-नवा हर शाम ख़ुश-आहंग है
ये जवानी है कि फ़िरदौस-ए-रबाब-ओ-चंग है
जौर-ए-पैहम से तअज्जुब के अगर दिल तंग है
वो हँसी जो हद से बढ़ जाए पयाम-ए-जंग है
ये ख़बर भी ऐ असीर-ए-जल्वा-ए-सद-रंग है
दिल के आईने को अक्स-ए-लाला-ओ-गुल-रंग है
अह्द अह्द-ए-ना-तवाँ हर उज़्र उज़्र-ए-लंग है
क्या यही तहज़ीब-ए-शम्अ'-ए-महफ़िल-ए-अफ़रंग है
तुम नहीं तो इक दिल-ए-मग़्मूम पर क्या मुनहसिर
हर गुल-ए-फ़िरदौस तस्वीर-ए-शिकस्ता-रंग है
वो अगर शो'ला-ज़न-ए-दिल हों तो हुस्न-ए-इल्तिफ़ात
दिल अगर शिकवा-कुन-ए-सोज़-ए-दरूँ हो नंग है
क्या हरीफ़-ए-सोहबत-ए-बेगाना हो तब्अ'-ए-लतीफ़
सीना-ए-शबनम पे बर्ग-ए-सब्ज़ा-ए-तर संग है
वो शिकस्त-ए-दिल जो हो मरहून-ए-ज़र्ब-ए-ज़िक्र-ए-दोस्त
जज़्ब-ओ-मस्ती को सरोश-ए-साज़-ए-ख़ुश-आहंग है
लौह-ए-हस्ती पर नहीं इक शय भी मर्फ़ू'-उल-क़लम
नुक़्ता-ए-सहव इस जगह नुक़्ता नहीं फ़रहंग है
ख़तरा-ए-रहज़न से बढ़ कर हो जहाँ एहसान-ए-ख़िज़्र
इक क़दम इस जादा-ए-उलफ़त में सौ फ़रसंग है
काश वो फिर हों रहीन-ए-काविश-ए-क़तअ'-ओ-बुरीद
गो क़बा-ए-ज़िंदगी रंगीं है लेकिन तंग है
ख़ंदा-ए-गुल हो रहीन-ए-गिर्या-ए-शबनम जहाँ
वो जहान-ए-रंग-ओ-बू भी 'फ़ैज़' इक नैरंग है
स्रोत:
Aabshar (Pg. 189)
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लेखक:
फ़ैज़ झंझानवी
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- प्रकाशक: उर्दू मज्लिस, दिल्ली
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