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ग़ज़ल
वही जोश-ए-हक़-शनासी वही अज़्म-ए-बुर्द-बारी
न बदल सका ज़माना मिरी ख़ू-ए-वज़ा-दारी
जुर्म मुहम्मदाबादी
ग़ज़ल
ख़ुलूस तेरा भी अब ज़द में आ गया 'बानी'
यहाँ ये रोज़ के क़िस्से हैं जी बुरा मत कर