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ग़ज़ल
हमराह गुल-अंदामों के हो ख़ुर्रम-ओ-ख़ंदाँ
बाग़-ओ-चमन-ओ-गुलशन-ओ-बुसताँ में गुज़र थे
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
है ये वक़्त-ए-सैर-ए-बुसताँ फलें हम भी साथ ऐ जाँ
कहा सुन के ये अरे म्याँ कोई तुम भी हो तमाशा
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
गो बहार अब है वले रोज़-ए-ख़िज़ाँ ऐ बुलबुल
यक-क़लम नर्गिस ओ गुल जावेंगे बुसताँ से निकल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
याँ उस गली सा कब कोई बुस्ताँ है दूसरा
हाँ कुछ जो है तो रौज़ा-ए-रिज़वाँ है दूसरा
जुरअत क़लंदर बख़्श
ग़ज़ल
मिस्ल-ए-तस्वीर-ए-ख़याली मुर्ग़-ए-बुसताँ हैं ख़मोश
बाग़बाँ गुलशन में कोई दिल-फ़िगार आने को है
जमीला ख़ुदा बख़्श
ग़ज़ल
उस के जाने से ये दिल में आए है रह रह के हाए
सब जहाँ बस्ता है इक अपना ही घर वीराँ हुआ
जुरअत क़लंदर बख़्श
ग़ज़ल
शौक़ का नाज़ुक दरख़्त ख़ुश्क हुआ दर्द सूँ
हुस्न के बुस्ताँ में तू चुप से हुआ बेवफ़ा
उबैदुल्लाह ख़ाँ मुब्तला
ग़ज़ल
हुई फिर देखिए आ बुस्तन-ए-शादी-ओ-ग़म दुनिया
अभी पैदा हुए थे रंज-ओ-राहत तो अमाँ हो कर
नज़्म तबातबाई
ग़ज़ल
सर्व-ओ-शमशाद-ओ-गुल-ओ-लाला उसी का है ज़ुहूर
देखने उस के ज़ुहूरात कूँ बुस्तान में आ
क़ुर्बी वेलोरी
ग़ज़ल
बर्ग-ए-ख़िज़ाँ-रसीदा बनाया है इश्क़ ने
मैं मौसम-ए-बहार में बुस्ताँ से दूर हूँ