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ग़ज़ल
अंजुम-ओ-मेहर-ए-गुल-ओ-बर्ग-ओ-सबा कुछ भी नहीं
ख़ूब देखा ब-ख़ुदा ग़ैर-ए-ख़ुदा कुछ भी नहीं
दिल अय्यूबी
ग़ज़ल
मैं गुल-ए-रमीदा-ए-रंग-ओ-बू तू बहार-ए-मय-कदा-ए-नुमू
मैं हमेशा खस्ता-ए-आरज़ू तू हमेशा ऐश-ए-जवाँ रहा
अख़्तर शीरानी
ग़ज़ल
'सबा' जो ज़िंदगी भीगी हुई है बारिश-ए-गुल से
बुलाएगा किसी दिन उस को वीराना तो क्या होगा
सबा अकबराबादी
ग़ज़ल
आह को बाद-ए-सबा दर्द को ख़ुशबू लिखना
है बजा ज़ख़्म-ए-बदन को गुल-ए-ख़ुद-रू लिखना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
बू-ए-गुल पत्तों में छुपती फिर रही थी देर से
ना-गहाँ शाख़ों में इक दस्त-ए-सबा रौशन हुआ
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
ऐ 'सबा' आप रिआ'यत न करें लफ़्ज़ों की
ज़र-ए-गुल पाया जो गुलचीं ने तो क्या माल हुआ
वज़ीर अली सबा लखनवी
ग़ज़ल
वो तो उड़ता रह गया है ख़ुश्बू-ए-गुल में मगर
प्यार की सरहद पे ज़िंदा है 'सबा' अपनी जगह