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ग़ज़ल
दश्त-ए-वहशत में हमारा अब हुआ है बूद-ओ-बाश
सर फिराने को अबस सय्याद करता है तलाश
लुत्फ़ुन्निसा इम्तियाज़
ग़ज़ल
हर एक दौर में इंसाँ की बूद-ओ-बाश मिली
किसी ज़मीं को भी खोदा तो मेरी लाश मिली