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ग़ज़ल
मोहब्बत आसमाँ को जब ज़मीं करने की ज़िद ठहरी
तो फिर बुज़दिल उसूलों की शराफ़त दरमियाँ क्यूँ हो
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
कितने सर हैं कि जो गर्दन-ज़दनी हैं अब भी
हम कि बुज़दिल हैं मगर हाथ में शमशीरें हैं
अमीर क़ज़लबाश
ग़ज़ल
सूखे पेड़ों को आँधी का कोई ख़ौफ़ नहीं होता है
पेड़ लदा हो पत्तों से तो थोड़ा बुज़दिल हो जाता है
संदीप ठाकुर
ग़ज़ल
किस किस को बताऊँ कि मैं बुज़दिल नहीं 'राग़िब'
इस दौर में मफ़्हूम-ए-शराफ़त ही अलग है
इफ़्तिख़ार राग़िब
ग़ज़ल
महाज़-ए-जंग पर सीना-सिपर हो कर मैं चलता हूँ
मगर बुज़दिल हमेशा पुश्त पर ही वार करते हैं
अब्दुल मजीद ख़ाँ मजीद
ग़ज़ल
दुनिया हम से लेती क्या और हम दुनिया को देते क्या
सब थे सीधे-सादे बुज़दिल आड़े-तिरछे हम ही थे