aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "buzurgo.n"
महबूब का घर हो कि बुज़ुर्गों की ज़मीनेंजो छोड़ दिया फिर उसे मुड़ कर नहीं देखा
पहुँचा है बुज़ुर्गों के बयानों से जो हम तकक्या बात हुई क्यूँ वो ज़माना नहीं आता
कह दो इस अहद के बुज़ुर्गों सेज़िंदगी की दुआ न दी जाए
रविश बुज़ुर्गों की शामिल है मेरी घुट्टी मेंज़रूरतन भी सखी की तरफ़ नहीं देखा
जवानी की हवाएँ चल रही हैंबुज़ुर्गों का ख़ज़ाना चल रहा है
वज़'-दारी तो बुज़ुर्गों की अमानत है मगरअब ये बिकते हुए ज़ेवर नहीं देखे जाते
चाँद तारे मिरे क़दमों में बिछे जाते हैंये बुज़ुर्गों की दुआओं का असर लगता है
किसे मा'लूम क्या होगा मआल आइंदा नस्लों काजवाँ हो कर बुज़ुर्गों की रिवायत छोड़ दी हम ने
फेसबुक वक़्त अगर दे तो ये प्यारे बच्चेअपने ख़ामोश बुज़ुर्गों की शिकायत समझें
चाँद सूरज बुज़ुर्गों के नक़्श-ए-क़दमख़ैर बुझने दो उन को हवा तो चले
बिना पैरों के सर चलते नहीं हैंबुज़ुर्गों की समझदारी से बचिए
वो इत्र-दान सा लहजा मिरे बुज़ुर्गों कारची-बसी हुई उर्दू ज़बान की ख़ुशबू
मेरे ही बुज़ुर्गों ने सर-बुलंदियाँ बख़्शींमेरे ही क़िबले पर मश्क़-ए-संग-बारी है
मुसीबत और लम्बी ज़िंदगानीबुज़ुर्गों की दुआ ने मार डाला
अभी तो घर में न बैठें कहो बुज़ुर्गों सेअभी तो शहर के बच्चे सलाम करते हैं
फेंकी न 'मुनव्वर' ने बुज़ुर्गों की निशानीदस्तार पुरानी है मगर बाँधे हुए है
ये तूल-ए-उम्र ना-माक़ूल ओ बे-कैफ़बुज़ुर्गों की दुआ है और मैं हूँ
हम से ऐ हुस्न अदा कब तिरा हक़ हो पायाआँख भर तुझ को बुज़ुर्गों के न डर से देखा
ख़ूब है ख़ाक से बुज़ुर्गों कीचाहना तो मिरे तईं इमदाद
मज़ाक़ उड़ाते हैं लोग फ़र्ज़ी कहानियों काकि सीधे-सादे से उन बुज़ुर्गों का क्या बनेगा
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