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ग़ज़ल
इदरीस बाबर
ग़ज़ल
केक बिस्कुट खाएँगे उल्लू-के-पट्ठे रात दिन
और शरीफ़ों के लिए आटा गिराँ हो जाएगा
हुसैन मीर काश्मीरी
ग़ज़ल
दाम-ए-हर-मौज में है हल्क़ा-ए-सद-काम-ए-नहंग
देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गुहर होते तक
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
जब शहर के लोग न रस्ता दें क्यूँ बन में न जा बिसराम करे
दीवानों की सी न बात करे तो और करे दीवाना क्या
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
मय-कदे में क्या तकल्लुफ़ मय-कशी में क्या हिजाब
बज़्म-ए-साक़ी में अदब आदाब मत देखा करो