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ग़ज़ल
नासिर काज़मी
ग़ज़ल
हज़ारों शेर मेरे सो गए काग़ज़ की क़ब्रों में
अजब माँ हूँ कोई बच्चा मिरा ज़िंदा नहीं रहता
बशीर बद्र
ग़ज़ल
इश्क़ की हालत कुछ भी नहीं थी बात बढ़ाने का फ़न था
लम्हे ला-फ़ानी ठहरे थे क़तरों की तुग़्यानी थी
जौन एलिया
ग़ज़ल
हवाएँ जिन की अंधी खिड़कियों पर सर पटकती हैं
मैं उन कमरों में फिर शमएँ जला कर देख लेता हूँ
अहमद मुश्ताक़
ग़ज़ल
ज़िंदगानी का मज़ा मिलता था जिन की बज़्म में
उन की क़ब्रों का भी अब मुझ को पता मिलता नहीं
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
कशिश से कब है ख़ाली तिश्ना-कामी तिश्ना-कामों की
कि बढ़ कर मौजा-ए-दरिया लब-ए-साहिल से मिलता है