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ग़ज़ल
तिरे मनचलों का जग में ये अजब चलन रहा है
न किसी की बात सुनना, न किसी से बात करना
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
फ़रेब-ए-हुस्न से गब्र-ओ-मुसलमाँ का चलन बिगड़ा
ख़ुदा की याद भूला शैख़ बुत से बरहमन बिगड़ा