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ग़ज़ल
मआ'ज़-अल्लाह उस की वारदात-ए-ग़म मआ'ज़-अल्लाह
चमन जिस का वतन हो और चमन-बे-ज़ार हो जाए
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
जुदाई किस तरह बरताव हम लोगों से करती है
मिज़ाजन हम-सुख़नवर बे-दिल-ओ-बे-ज़ार कैसे हैं
ऐतबार साजिद
ग़ज़ल
तौबा तौबा क्या ग़ज़ब साक़ी की ग़फ़्लत ने किया
सब की सूरत देखता हूँ रिंद-ए-बे-ज़र की तरह
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
ग़ज़ल
क्या बात है अब तक जो सलामत है नशेमन
कुछ बे-रुख़ी-ए-अहल-ए-चमन कम तो नहीं है
सय्यद शफ़क़ शाह चिश्ती
ग़ज़ल
इस वास्ते तू क़द्र मिरी जानता नहीं
हाँ इन तिरे ग़ुलामों में बे-ज़र ख़रीदा हूँ
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ग़ज़ल
बंदा है ख़ुदा का तो यक़ीं कर कि बुताँ का
बंदा ये जहाँ बे-ज़र-ओ-बे-दाम का हूँ मैं
मोहम्मद रफ़ी सौदा
ग़ज़ल
चमन बे-रंग अफ़्सुर्दा कली हर फूल बे-ख़ुश्बू
बहारों की फ़ज़ा भी इस बरस लाई उदासी है