शौक़-ए-दिल फ़िक्र-ए-दहन में है जो रहबर की तरह
ढूँढता हूँ चश्मा-ए-हैवाँ सिकंदर की तरह
मेरी आहों को अबस है ना-रसाई का गिला
दिल में घर करना तो सीखें याद-ए-दिलबर की तरह
सर से पा तक है मिसाल-ए-गर्दन-ए-तस्लीम ख़म
किस से होता है अदब क़ातिल का ख़ंजर की तरह
था जो वक़्त-ए-क़त्ल अरमान-ए-हम-आग़ोशी मुझे
ख़ूँ की छींटें लिपटी हैं ख़ंजर से जौहर की तरह
दर्द-ए-दिल उठ उठ के ढाता है क़यामत जान पर
शाम-ए-हिज्र-ए-आशिक़ाँ है सुब्ह-ए-महशर की तरह
दिल को आँखों ने सुझाई हैं जो राहें इश्क़ की
हर जगह मुझ को लिए फिरता है रहबर की तरह
याद-ए-गेसू इक बला-ए-जाँ-सिताँ है हिज्र में
काटे खाता है मिरा घर मुझ को अज़दर की तरह
इस को लुत्फ़-ए-दर्द उस को लज़्ज़त-ए-मश्क़-ए-जफ़ा
दिल की आदत बिगड़ी है ख़ू-ए-सितमगर की तरह
उन की आमद की ख़बर सुन कर हुजूम-ए-शौक़ से
कश्मकश है ख़ाना-ए-दिल में भरे घर की तरह
मिस्ल-ए-दीवाना फिरा करता है क्यों ये रोज़-ओ-शब
आसमाँ को भी है क्या सौदा मिरे सर की तरह
आप की ग़फ़्लत से सारी आरज़ूएँ मर गईं
दिल मिरा वीरान है उजड़े हुए घर की तरह
बन के शबनम लाख टपकें चश्म-ए-अख़्तर से सरिश्क
रोएगा क्या आसमाँ उस दीदा-ए-तर की तरह
टुकड़े टुकड़े दिल जिगर हैं तेज़ फ़िक़्रों से हुज़ूर
आप की तेग़-ए-ज़बाँ चलती है ख़ंजर की तरह
राह में दिल नीची नज़रों से हुआ जाता है ज़ब्ह
झुक के भी चलता है वो क़ातिल तो ख़ंजर की तरह
शुक्र-ए-ख़ालिक़ है कि बे-मिन्नत मैं होता हूँ शहीद
दिल को याद-ए-अबरू-ए-क़ातिल है ख़ंजर की तरह
तौबा तौबा क्या ग़ज़ब साक़ी की ग़फ़्लत ने किया
सब की सूरत देखता हूँ रिंद-ए-बे-ज़र की तरह
हिज्र-ए-साक़ी में नज़र आया कहीं गर शग़्ल-ए-मय
डबडबाए दीदा-ए-तर चश्म-ए-साग़र की तरह
आरज़ू-ए-वस्ल-ए-क़ातिल इतनी है मुझ ज़ार को
हूँ हमा-तन सूरत-ए-आग़ोश ख़ंजर की तरह
ऐ 'नज़र' इश्क़-ए-मियान-ए-यार का है ये असर
जिस्म-ए-लाग़र जो निहाँ है जाँ के जौहर की तरह
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