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ग़ज़ल
हम अपना 'इश्क़ चमकाएँ तुम अपना हुस्न चमकाओ
कि हैराँ देख कर 'आलम हमें भी हो तुम्हें भी हो
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
जाम-ए-ग़म आज भी छलकाओ कि कुछ रात कटे
साथ रक्खो मुझे बहलाओ कि कुछ रात कटे
मोहम्मद अब्दुल क़ादिर अदीब
ग़ज़ल
अक्स-ए-रुख़्सार ने किस के है तुझे चमकाया
ताब तुझ में मह-ए-कामिल कभी ऐसी तो न थी
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
रहा करते हैं क़ैद-ए-होश में ऐ वाए-नाकामी
वो दश्त-ए-ख़ुद-फ़रामोशी के चक्कर याद आते हैं
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
बर्ग-ए-गुल पर रख गई शबनम का मोती बाद-ए-सुब्ह
और चमकाती है उस मोती को सूरज की किरन
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
चिड़ियों की चहकार में गूँजे राधा मोहन अली अली
मुर्ग़े की आवाज़ से बजती घर की कुंडी जैसी माँ