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ग़ज़ल
चंगुल में है मूज़ी के दिल उस चश्म के हाथों
घेरा ये ग़ज़ब पंजा-ए-मिज़्गाँ के लिए है
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
न उड़ता मुर्ग़-ए-दिल तो चंगुल-ए-शाहीं में क्यूँ फँसता
गया ये ख़स्ता अपनी ख़ूबी-ए-परवाज़ से मारा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
यूँ पंजा-ए-मिज़्गाँ में पड़ा है ये मरा दिल
जूँ चंगुल-ए-शहबाज़ में उस्फ़ूर की गर्दन
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
राह में हाइल क़ाफ़ पहाड़ और हाथ चराग़ से ख़ाली
क्यूँकर जिन्नों के चंगुल से हम छुड़वाएँ परियाँ
हसन अब्बास रज़ा
ग़ज़ल
फ़र्क़ हयात ओ मर्ग का मुर्ग़-ए-चमन के दिल से पूछ
देता है फ़ौक़ दाम को चंगुल-ए-शाह-बाज़ पर
साइल देहलवी
ग़ज़ल
बाँट के अपना चेहरा माथा आँखें जाने कहाँ गई
फटे पुराने इक एल्बम में चंचल लड़की जैसी माँ
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
चंग ओ नय रंग पे थे अपने लहू के दम से
दिल ने लय बदली तो मद्धम हुआ हर साज़ का रंग