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ग़ज़ल
उठ गया बज़्म-ए-तरब से वो रक़ीब-ए-रू-सियाह
रफ़्ता रफ़्ता हाथ जब पहुँचा मिरा चप्पल के पास
शौक़ बहराइची
ग़ज़ल
जिन के पैरों को यहाँ चप्पल कभी मिलती नहीं
उन से पूछो कैसे बन जाती हैं पत्थर एड़ियाँ