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ग़ज़ल
हमारी मा'सूमियत तो देखो रख आए दिल हम हुज़ूर-ए-जानाँ
कि जैसे कोई ख़ुदा का बंदा हवा के आगे चराग़ रख दे
चराग़ शर्मा
ग़ज़ल
अब बला से हो चराग़-ए-दैर या शम-ए-हरम
क़स्द जल कर ख़ाक हो जाने का परवाने में है
मुज़फ़्फ़र शिकोह
ग़ज़ल
जयकृष्ण चौधरी हबीब
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
'फ़ज़ा' चराग़-ओ-शफ़क़ दोनों रहज़नों की मताअ'
जो ख़ैर चाहो तो रस्ते में शाम मत करना