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ग़ज़ल
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
दिल नहीं तुझ को दिखाता वर्ना दाग़ों की बहार
इस चराग़ाँ का करूँ क्या कार-फ़रमा जल गया
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ये रूह रक़्स-ए-चराग़ाँ है अपने हल्क़े में
ये जिस्म साया है और साया ढल रहा है मियाँ
नसीर तुराबी
ग़ज़ल
दिखाऊँगा तमाशा दी अगर फ़ुर्सत ज़माने ने
मिरा हर दाग़-ए-दिल इक तुख़्म है सर्व-ए-चराग़ाँ का
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
शरर-फ़ुर्सत निगह सामान-ए-यक-आलम चराग़ाँ है
ब-क़द्र-ए-रंग याँ गर्दिश में है पैमाना महफ़िल का
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
है चराग़ाँ ही चराग़ाँ सर-ए-आरिज़ सर-ए-जाम
रंग-ए-सद-जल्वा-ए-जानाना सनम-ख़ाना बना