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ग़ज़ल
क़ल्ब ओ निगाह की ये ईद उफ़ ये मआल-ए-क़ुर्ब-ओ-दीद
चर्ख़ की गर्दिशें तुझे मुझ से छुपा के रह गईं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
किस लिए उज़्र-ए-तग़ाफुल किस लिए इल्ज़ाम-ए-इश्क़
आज चर्ख़-ए-तफ़रक़ा-पर्वाज़ की बातें करो
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
चर्ख़-ए-कज-रफ़्तार है फिर माइल-ए-जौर-ओ-सितम
बिजलियाँ शाहिद हैं ख़िर्मन को जलाने के लिए
सय्यद सादिक़ हुसैन
ग़ज़ल
हम को गर तू ने रुलाया तो रुलाया ऐ चर्ख़
हम पे ग़ैरों को तो ज़ालिम न हँसाना हरगिज़
अल्ताफ़ हुसैन हाली
ग़ज़ल
रक़ीबों पर अदू पर ग़ैर पर चर्ख़-ए-सितमगर पर
जफ़ा क्या कर नहीं सकते हैं वो लेकिन नहीं करते