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ग़ज़ल
जिसे हम लोग मिल कर आश्रम में छोड़ आए थे
वो चरख़ा कातती है चाँद के चेहरे में रहती है
रहमान मुसव्विर
ग़ज़ल
कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा
कुछ ने कहा ये चाँद है कुछ ने कहा चेहरा तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तिरे ऊपर निसार
ले तिरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है