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ग़ज़ल
यूँ तो अंदाज़-ए-बयाँ हैं दिल-नशीं सब के मगर
इक नए अंदाज़ में अफ़्कार-ए-हमदम देखिए
हमदम सिद्दीकी
ग़ज़ल
जाएज़ा लेते रहो 'हमदम' किताब-ए-ज़ीस्त का
आने वाला कल तुम्हारा इम्तिहाँ होगा ज़रूर
हमदम सिद्दीकी
ग़ज़ल
पड़ के हाथों में ज़माने के ज़रा 'हमदम' बता
ज़िंदगी वक़्फ़-ए-अलम मश्क़-ए-सितम है कि नहीं
हमदम सिद्दीकी
ग़ज़ल
हमारे दौर-ए-माज़ी की न हम से पूछ ऐ 'हमदम'
वही अच्छे हैं लम्हे ज़िंदगी के जो गुज़र जाएँ
बलदेव सिंह हमदम
ग़ज़ल
बक़ा की फ़िक्र न अंदेशा-ए-फ़ना 'हमदम'
ख़ुदा के जल्वे में ख़ुद को समा रहा हूँ मैं
बलदेव सिंह हमदम
ग़ज़ल
मंज़िल-ए-इश्क़ में क्या काम था उन का 'हमदम'
थक के जो बैठ गए राह में आराम के साथ