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ग़ज़ल
जगह दिल में न दे शौक़-ए-नुमू-दारी बुरी शय है
यही चसका तुझे बर्बाद ऐ नादान कर देगा
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
बैठे बैठे आप से कर बैठता हूँ कुछ गुनाह
पाँव पड़ने का जो उस के मुझ को चसका पड़ गया
जुरअत क़लंदर बख़्श
ग़ज़ल
भला अब मुझ से छुटता है कहीं उस शोख़ का चसका
ये क्या है छेड़ मेरी हर घड़ी की हम-नशीं पकड़ी
निज़ाम रामपुरी
ग़ज़ल
मैं तो बाज़ी हार कर बे-फ़िक्र हो कर चल दिया
जीतने वालों को चसका लग गया अच्छा नहीं