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ग़ज़ल
अक्स-ए-रुख़्सार ने किस के है तुझे चमकाया
ताब तुझ में मह-ए-कामिल कभी ऐसी तो न थी
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
अमीर ख़ुसरो
ग़ज़ल
बहज़ाद लखनवी
ग़ज़ल
ये दिल बच कर ज़माने भर से चलना चाहे है लेकिन
जब अपनी राह चलता है अकेला होने लगता है