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ग़ज़ल
बर्ग-ए-गुल देख के आँखों में तिरे फिर गए लब
ग़ुंचा चटका तो मुझे लुत्फ़-ए-सुख़न याद आया
अमानत लखनवी
ग़ज़ल
ब-फ़र्त-ए-शौक़ हर गुल में तिरे रुख़ की ज़िया समझे
अगर चटका कोई ग़ुंचा तो हम तेरी सदा समझे
जौहर ज़ाहिरी
ग़ज़ल
ग़ुंचा चटका पत्ता खड़का या दिल धड़का किस को ख़बर
कुछ भी सही ऐ मय-ख़्वारो आवाज़-ए-शिकस्त-ए-जाम नहीं