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ग़ज़ल
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
शगुफ़्त-ए-दिल ही के दम तक थी रंग-ओ-बू की दुनिया भी
न फिर कोई कली चटकी न फिर कोई पयाम आया
आरज़ू सहारनपुरी
ग़ज़ल
दम-ए-सुब्ह-ए-नौ-बहाराँ जो कली चमन में चटकी
तो गुमाँ हुआ कि जैसे मुझे आप ने पुकारा
फ़ारूक़ बाँसपारी
ग़ज़ल
पलक से इस तरह टपका कि गोया इक कली चटकी
हम अहल-ए-दर्द अश्क-ए-ग़म को भी शबनम समझते हैं
अली जवाद ज़ैदी
ग़ज़ल
शगुफ़्त-ए-दिल ही के दम तक थी रंग-ओ-बू की दुनिया भी
न फिर कोई कली चटकी न फिर कोई पयाम आया
आरज़ू सहारनपुरी
ग़ज़ल
दस्त-ए-सबा ने फिर से मेरे दामन में महका दी हैं
चटकी कलियाँ भीनी ख़ुशबू तेरी बातें तन्हाई
फ़र्रुख़ ज़ोहरा गिलानी
ग़ज़ल
कली चटकी न गुल महके न ग़ुंचों पर निखार आया
अजब अंदाज़ से अब के गुलिस्ताँ में बहार आई