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ग़ज़ल
हुस्न हर शय पर तवज्जोह की नज़र का नाम है
बार-हा काँटों की रानाई ने चौंकाया मुझे
सय्यद ज़मीर जाफ़री
ग़ज़ल
बहज़ाद लखनवी
ग़ज़ल
मुद्दतों तर्क-ए-तमन्ना पे लहू रोया है
इश्क़ का क़र्ज़ चुकाया है बहुत दिन हम ने
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
झगड़ों में अहल-ए-दीं के न 'हाली' पड़ें बस आप
क़िस्सा हुज़ूर से ये चुकाया न जाएगा