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ग़ज़ल
मैं सारा दिन बहुत मसरूफ़ रहता हूँ मगर जूँही
क़दम चौखट पे रखता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं
वसी शाह
ग़ज़ल
कैसी गुल-रंग है मशरिक़ का उफ़ुक़ देख नदीम
नदी का ख़ूँ रात की चौखट पे बहा हो जैसे