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ग़ज़ल
मैं साबित किस तरह करता कि हर आईना झूटा है
कई कम-ज़र्फ़ चेहरों को उतर जाने की जल्दी थी
राहत इंदौरी
ग़ज़ल
अब ये सोचूँ तो भँवर ज़ेहन में पड़ जाते हैं
कैसे चेहरे हैं जो मिलते ही बिछड़ जाते हैं
मोहसिन नक़वी
ग़ज़ल
ज़ख़्म की सूरत नज़र आते हैं चेहरों के नुक़ूश
हम ने आईनों को तहज़ीबों का मक़्तल कर दिया