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ग़ज़ल
छपर-खट याँ जो सोने की बनाई इस से क्या हासिल
करो ऐ ग़ाफ़िलो कुछ क़ब्र में तदबीर सोने की
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
भरी बारिश में छप्पर से टपकता ख़ूब जब पानी
वो आँचल में हमें माँ का छुपाना याद आता है
ऋतु सिंह राजपूत रीत
ग़ज़ल
ये तो छपर-खट छोटा सा है पहलू में तुम सोओगे क्यूँकर
आओ लिटा लें सीने पर हम तुम को सुला लें छाती पर हम