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ग़ज़ल
बेसन की सौंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी माँ
याद आती है! चौका बासन चिमटा फुकनी जैसी माँ
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
ला उठा तेशा चटानों से कोई चश्मा निकाल
सब यहाँ प्यासे हैं तेरे ख़ुश्क लब देखेगा कौन
मेराज फ़ैज़ाबादी
ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
अपने अंदर हँसता हूँ मैं और बहुत शरमाता हूँ
ख़ून भी थूका सच-मुच थूका और ये सब चालाकी थी
जौन एलिया
ग़ज़ल
चमन में नाज़ बुलबुल ने किया जो अपनी नाले पर
चटक कर ग़ुंचा बोला क्या किसी से हो नहीं सकता
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
चटक रही है किसी याद की कली दिल में
नज़र में रक़्स-ए-बहाराँ की सुब्ह-ओ-शाम लिए