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ग़ज़ल
ज़िक्र जिस दम भी छिड़ा उन की गली में मेरा
जाने शरमाए वो क्यूँ गाँव की दुल्हन की तरह
गोपालदास नीरज
ग़ज़ल
नींद में है अभी कली फूल अभी खिला नहीं
बरबत-ए-इश्क़ पर मगर नग़्मा-ए-दिल छिड़ा नहीं
राजेन्द्र बहादुर माैज
ग़ज़ल
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
ज़िक्र तूफ़ान-ए-हवादिस का छिड़ा जो एक दिन
होते होते दास्ताँ मेरी बयाँ होने लगी