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ग़ज़ल
छिड़े हैं तार दिल के ख़ाना-बर्बादी के नग़्मे हैं
हमारे घर में साहिब रत-जगा ऐसा भी होता है
ज़फ़र गोरखपुरी
ग़ज़ल
अब ऐसी बातें कोई करे जो सब के मन को लुभा जाएँ
कोई तो ऐसा गीत छिड़े वो जिस को सुनें और आ जाएँ
सालिक लखनवी
ग़ज़ल
इस से पहले कि छिड़े ज़िक्र-ए-वफ़ा प्यार की बात
मशवरा कर लो ज़रा वक़्त की सरकारों से