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ग़ज़ल
ख़ाम है 'काविश' हमारा ख़्वाब दिन में देखना
शैख़-चिल्ली और सब का बे-तुका सा ख़्वाब है
काविश बद्री
ग़ज़ल
कहाँ से क़ाफ़िया ला ला के अपने शे'र में ढाला
है 'आजिज़' दिल में तेरे दाग़ या तूँ शैख़-चिल्ली है
आरिफ़ुद्दीन आजिज़
ग़ज़ल
तुझे भूल जाने की कोशिशें कभी कामयाब न हो सकीं
तिरी याद शाख़-ए-गुलाब है जो हवा चली तो लचक गई
बशीर बद्र
ग़ज़ल
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
तिरी कज-अदाई से हार के शब-ए-इंतिज़ार चली गई
मिरे ज़ब्त-ए-हाल से रूठ कर मिरे ग़म-गुसार चले गए