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ग़ज़ल
अभी तक पाँव से चिमटी हैं ज़ंजीरें ग़ुलामी की
दिन आ जाता है आज़ादी का आज़ादी नहीं आती
जामी रुदौलवी
ग़ज़ल
जो ज़ुल्फ़ देखी तो चिमटी मुझे बला की तरह
नसीब अपने की बतलाएँ शामतें क्या क्या
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ग़ज़ल
'नबील' इस तरह चिमटी है किसी की याद इस दिल से
जमी रहती है जैसे गर्द की इक शाल सड़कों पर
अनस नबील
ग़ज़ल
वाए क़िस्मत पाँव की ऐ ज़ोफ़ कुछ चलती नहीं
कारवाँ अपना अभी तक पहली ही मंज़िल में है