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ग़ज़ल
तेरी नीली चुनरी ने क्या हाल किया बाग़ीचे का
नारंगी फूलों वाला गुल-मोहर नीला नीला है
गौतम राजऋषि
ग़ज़ल
बात कफ़न की निकली थी पर रस्ते में नीलाम हुई
रंग-बिरंगी चुनरी हो गई जब पहुँची अख़बारों तक
प्रबुद्ध सौरभ
ग़ज़ल
जो पागल औरत परसों तक इक गुड़िया नोचा करती थी
कल उस की झिलमिल चुनरी में एक मटियाला गुड्डा सा था
बिमल कृष्ण अश्क
ग़ज़ल
कहाँ से अकबर-ए-आज़म के गुलशन में बहार आती
अगर चुनरी वो जोधाबाई की धानी नहीं होती
मक़सूद अनवर मक़सूद
ग़ज़ल
बाद-ओ-बाराँ ने भी उस से दिल-लगी क्या ख़ूब की
जो उड़ा कर ले गईं छतरी जुदा चुनरी जुदा