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ग़ज़ल
न जाने ये अनोखा फ़र्क़ इस में किस तरह आया
वो अब कॉलर में फूलों की जगह बिच्छू लगाता है
राहत इंदौरी
ग़ज़ल
तरीक़े से लगा रक्खा है खिड़की में जो सालों से
बहुत ठंडी हवा देता मेरा कूलर पुराना है
तनोज दाधीच
ग़ज़ल
चलते चलते उस का आँचल छू के ऐसा गुज़रा है
मेरे जिस्म पे काले रंग की शर्ट का कॉलर चौंक पड़ा
इमरान राहिब
ग़ज़ल
फूल कलियाँ जिस के कॉलर में सजा कर आ गई
ज़िंदगी की खेतियों को बे-समर उस ने किया