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ग़ज़ल
दाएरे इंकार के इक़रार की सरगोशियाँ
ये अगर टूटे कभी तो फ़ासला रह जाएगा
इफ़्तिख़ार इमाम सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
तुम्हारे दाएरे में ज़िंदगी महफ़ूज़ रहती है
निज़ाम-ए-बज़्म-ए-हस्ती के हिसारो तुम न सो जाना
कौसर सीवानी
ग़ज़ल
मैं मय-कदे से दूर हूँ पर दाएरे में हूँ
ज़िंदा रहा तो तेरे गले आ लगूँगा मैं