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ग़ज़ल
हम को फँसना था क़फ़स में क्या गिला सय्याद का
बस तरसते ही रहे हैं आब और दाने को हम
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
गरज-बरस प्यासी धरती पर फिर पानी दे मौला
चिड़ियों को दाने बच्चों को गुड़-धानी दे मौला
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
क़फ़स में भी मुझे सय्याद के हाथों से मिलते हैं
मिरी तक़दीर के लिक्खे हुए दाने कहाँ जाते
मख़मूर देहलवी
ग़ज़ल
कहीं है दाम अरमाँ का कहीं दाने उम्मीदों के
अजल करती है किस किस घात से हम को शिकार अपना
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
ये कुछ बहरूप-पन देखो कि बन कर शक्ल दाने की
बिखरना सब्ज़ होना लहलहाना फिर सिमट जाना