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ग़ज़ल
तू गया घर में मुझे छोड़ के तन्हा जब से
सर पटकते हैं सितमगर दर-ओ-दीवार से हम
सिपाह दार ख़ान बेगुन
ग़ज़ल
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
गुम हुए जाते हैं धड़कन के निशाँ हम-नफ़सो
है दर-ए-दिल पे कोई संग-ए-गिराँ हम-नफ़सो
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
नहीं तर्जुमान-ए-बयाँ कोई जो है पर्दा-दार-ए-सुकूत है
हैं ये दाग़ दाग़ इबारतें बड़े एहतिमाल के दरमियाँ
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
तुम इसे कह लो हिसाब-ए-दोस्ताँ-दर-दिल 'फ़ज़ा'
हम ने अपना नफ़अ' भी लौह-ए-ज़ियाँ पर लिख दिया
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
किस की चीख़ों से लरज़ते हैं दर-ओ-दीवार सब
कौन है जो रात भर रोता है तेरे शहर में
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
ग़ज़ल
अभी महल के दर-ओ-बाम ना-मुकम्मल हैं
ये किस ने ख़्वाब से आ कर जगा दिया मुझ को