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ग़ज़ल
कोई कुछ पूछे तो कहता कि हवा से बचना
ख़ुद भी डरता था बहुत सब को डरा देता था
राजेन्द्र मनचंदा बानी
ग़ज़ल
यहाँ पे 'मेराज' तेरे लफ़्ज़ों की आबरू क्या
ये लोग बाँग-ए-दरा की क़ीमत लगा रहे हैं
मेराज फ़ैज़ाबादी
ग़ज़ल
राहिल हूँ मुसलमान ब-साद-नारा-ए-तकबीर
ये क़ाफ़िला ये बाँग-ए-दरा मेरे लिए है