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ग़ज़ल
ज़ुल्फ़-ए-शब-गूँ तिरे शाने पे खुली नागिन है
डस ले ये जिस को न फिर उठ के वो पानी माँगे
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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ज़ुल्फ़-ए-शब-गूँ तिरे शाने पे खुली नागिन है
डस ले ये जिस को न फिर उठ के वो पानी माँगे